योद्धा संन्यासी विवेकानंद—वसंत गोविंद पोतदार ”उठिए, जागिए, मेरे देशबंधुओ. आइए, मेरे पास आइए। सुनिए, आपको एक ज्वलंत संदेश देना है। इसका अर्थ यह नहीं है कि मैं कोई अवतार हूँ। ना-ना, मैं अवतार तो नहीं ही हूँ। कोई दार्शनिक अथवा संत भी नहीं हूँ। मैं हूँ, एक अति निर्धन व्यक्ति, इसीलिए सारे सर्वहारा मेरे दोस्त हैं। मित्रो. मैं जो कुछ कह रहा हूँ, उसे ठीक से समझ लीजिए। समझिए, आत्मसात् कीजिए और उसे जनमानस तक पहुँचाइए। घर-घर पहुँचाइए मेरे विचार। मेरे विचार-वृक्ष के बीजों को दुनिया भर में बोइए। तर्क की खुरदुरी झाड़ू से अंधविश्वास के जालों को साफ करने का अर्थ है शिक्षा। संस्कृति और परंपरा, दोनों एकदम भिन्न हैं, इसे स्पष्ट करने का नाम है शिक्षा।’ ’ स्वामी विवेकानंद के बहुआयामी व्यक्तित्व और कृतित्व के विषय में उपर्युक्त कथन के बाद यहाँ कुछ अधिक कहने की आवश्यकता नहीं है। हमारे आज के जो सरोकार हैं, जैसे शिक्षा की समस्या, भारतीय संस्कृति का सही रूप, व्यापक समाज-सुधार, महिलाओं का उत्थान, दलित और पिछड़ों की उन्नति, विकास के लिए विज्ञान की आवश्यकता, सार्वजनिक जीवन में नैतिक मूल्यों की आवश्यकता, युवकों के दायित्व, आत्मनिर्भरता, भारत का भविष्य आदि-आदि। भारत को अपने पूर्व गौरव को पुन: प्राप्त करने के लिए, समस्याओं के निदान के लिए स्वामीजी के विचारों का अवगाहन करना होगा। मूल स्रोतों और शोध पर आधारित यह पुस्तक ‘योद्धा संन्यासी’ हर आम और खास पाठक के लिए पठनीय एवं संग्रहणीय है।
Weight | 300 g |
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